...लो आज वो भी साहिबे-दीवान हो गये।
बज़्म-ए-ज़की ने सजाई शेअरी नशिस्त
बदायूं। मोहल्ला सोथा में कामयाब ज़की के निवास पर बज़्म-ए-ज़की के तत्त्वाधान में एक शेअरी नशिस्त (काव्य गोष्ठी) का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ शायर डॉ. एहसान रज़ा तथा मुख्य अतिथि सुरेन्द्र नाज़ रहे।
बिलाल कादरी ने नाते-पाक पढ़कर इस गोष्ठी का आग़ाज़ किया।
कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. एहसान रज़ा ने पढ़ा-
हमारे हौसले सदियों से आसमान में है
यह और बात हम टूटे हुए मकान में हैं।
आरिफ परवेज ने पढ़ा-
हुनर से आगही से कट गया है,
तआल्लुक शायरी से कट गया है।
अहमद अमजदी ने समा बांधा-
जो शायरी की शीन से वाक़िफ़ नहीं ज़रा,
लो आज वो भी साहिबे-दीवान हो गये।
मुख्य अतिथि सुरेन्द्र नाज़ ने पढ़ा-
फरेबों से यह दुनिया पाक कर दे,
या फिर मुझको खुदा चालाक कर दे।
वह यह सीने पे लिखकर मर गया है,
कोई है जो सुपर्द-ए-ख़ाक कर दे।
इक़्तिदार इमाम ने पढ़ा-
मुश्किलें जब भी पड़ी मुश्किल कुशा आया है याद
वरना यह बंदा तिरी मस्जिद को कम कम जाए है
इनके अलावा डॉ. दानिश बदायूंनी , बिलाल क़ादरी ने भी अपने-अपने कलाम पेश किये। संचालन अहमद अमजदी ने किया।
कार्यक्रम के अंत में साहिबे-ख़ाना कामयाब ज़की ने सभी उपस्थित लोगों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि ऐसी काव्य गोष्ठियों से अदब को फरोग मिलता है। बज़्म-ए-ज़की ऐसी गोष्ठियाँ भविष्य में भी करवाती रहेगी और हिंदी व उर्दू दोनों जुबानों के साहित्यकारों को मंच उपलब्ध करवायेगी।

